समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code-UCC) समय की मांग

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code-UCC)- समय की मांग

चर्चा में क्यों ?

  • समान नागरिक संहिता सांस्कृतिक या धार्मिक विविधता का अपमान नहीं, अपितु समान अधिकारों एवं न्याय का समर्थन है।
  • अमेरिका से लौटने के तुरंत बाद, पीएम मोदी ने कहा कि भारत को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता है क्योंकि देश "अलग-अलग समुदायों के लिए अलग कानून" की दोहरी प्रणाली के साथ नहीं चल सकता है।इससे भारत में वामपंथी-उदारवादी समूहों के बीच अटकलों का स्तर बढ़ गया है।

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) क्या है?

  • समान नागरिक संहिता (यूसीसी) ऐसा एकीकृत कानूनी ढांचा तैयार करती है ,जो सभी धार्मिक समुदायों पर एक समान रूप से लागू होता है।
  • भारत के संदर्भ में देखें तो यूसीसी के जरिए विवाह ,तलाक, भरण-पोषण भत्ता ,विरासत और गोद लेने जैसे मामलों में नियमों का एक मानकीकरण होगा और फिर यह मायने नहीं रखेगा कि ऐसा कोई मामला किस धर्म समुदाय से जुड़ा हुआ है।

यूसीसी का आधार: अनुच्छेद 44

  • निदेशक सिद्धांतों का अनुच्छेद 44 पूरे देश में सभी नागरिकों के लिए यूसीसी सुरक्षित करने के राज्य के प्रयास की कल्पना करता है।जबकि संविधान के डीपीएसपी(DPSP) अदालतों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते, वे शासन के लिए मौलिक सिद्धांत प्रदान करते हैं।

पर्सनल लॉ और यूसीसी: एक समयरेखा

  1. औपनिवेशिक काल: व्यक्तिगत कानून सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान हिंदू और मुस्लिम नागरिकों के लिए बनाए गए थे।
  2. 1940: यूसीसी का विचार राष्ट्रीय योजना आयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसने महिलाओं की स्थिति की जांच की और लैंगिक समानता के लिए सुधारों की सिफारिश की।
  3. 1947: मीनू मसानी, हंसा मेहता, अमृत कौर और डॉ. बी आर अंबेडकर द्वारा संविधान निर्माण के दौरान यूसीसी को मौलिक अधिकार माना गया था।
  4. 1948: संविधान सभा ने अनुच्छेद 44 पर बहस की, जो भाग IV के तहत राज्य कर्तव्य के रूप में समान नागरिक कानूनों के कार्यान्वयन पर जोर देता है।
  5. 1950: सुधारवादी विधेयक पारित किए गए, जिसमें हिंदू महिलाओं को तलाक और संपत्ति की विरासत का अधिकार दिया गया और द्विविवाह और बाल विवाह को गैरकानूनी घोषित किया गया।
  6. 1951: जब हिंदू कोड बिल का मसौदा संसद में रुक गया तो अंबेडकर ने इस्तीफा दे दिया।
  7. 1985: शाहबानो मामले ने यूसीसी की आवश्यकता और तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर प्रकाश डाला।
  8. 1995: सरला मुद्गल बनाम भारत संघ ने राष्ट्रीय एकीकरण और विरोधाभासों को दूर करने के लिए यूसीसी की तात्कालिकता को दोहराया।
  9. 2000: लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सरकार को यूसीसी पेश करने का निर्देश नहीं दे सकता।
  10. 2015: शीर्ष अदालत ने यूसीसी लागू करने के फैसले को अनिवार्य करने से इनकार कर दिया।
  11. 2016: ट्रिपल तलाक बहस ने ध्यान आकर्षित किया, जिसके कारण 2017 में इसकी असंवैधानिकता का फैसला सुनाया गया।

यूसीसी बनाम धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

  1. अनुच्छेद 25: किसी व्यक्ति को धर्म के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है।
  2. अनुच्छेद 26(बी): धार्मिक संप्रदायों के अपने मामलों का प्रबंधन करने के अधिकार को बरकरार रखता है।
  3. अनुच्छेद 29: विशिष्ट संस्कृति के संरक्षण के अधिकार की रक्षा करता है।सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य, नैतिकता और मौलिक अधिकारों से संबंधित अन्य प्रावधानों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
  4. कुछ सदस्यों ने धर्मनिरपेक्षता पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों में हस्तक्षेप के खिलाफ तर्क देते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ को राज्य विनियमन से छूट देने की मांग की।

यूसीसी की आवश्यकता

  • एकाधिक व्यक्तिगत कानून: विभिन्न धर्म और संप्रदाय अलग-अलग संपत्ति और वैवाहिक कानूनों का पालन करते हैं, जो राष्ट्रीय एकता में बाधा डालते हैं।
  • विशिष्ट क्षेत्राधिकार का अभाव: संघ सूची में ऐसी बात का तात्पर्य यह है कि निर्माताओं का यूसीसी बनाने का कोई इरादा नहीं था।
  • प्रथागत कानून भेदभावपूर्ण हैं: ये कानून भी विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों के बीच भिन्न-भिन्न हैं।

यूसीसी क्यों आवश्यक है?

  • समानता का सामंजस्य: यूसीसी सभी नागरिकों को समान दर्जा प्रदान करेगा, लैंगिक समानता को बढ़ावा देगा, और एक उदार और युवा आबादी की आकांक्षाओं के अनुरूप होगा।
  • भाईचारे को बढ़ावा मिलेगा : यूसीसी के कार्यान्वयन से राष्ट्रीय एकता को समर्थन मिलेगा।

यूसीसी कार्यान्वयन में बाधाएँ

  • धार्मिक गुटों का विरोध: भारत का विविध धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य व्यावहारिक कठिनाइयाँ पैदा करता है।
  • अल्पसंख्यक प्रतिरोध: यूसीसी को अक्सर अल्पसंख्यकों द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण और व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप के रूप में माना जाता है।
  • सामाजिक तैयारी: विशेषज्ञों का तर्क है कि भारतीय समाज वर्तमान में यूसीसी को अपनाने के लिए तैयार नहीं हो सकता है।
  • सांस्कृतिक विविधता के कारण निजी मामलों में एक समान राय बनाना व्यावहारिक रूप से बेहद मुश्किल है।
  • शरिया कानून, 1937, Hindu Marriage Act, 1955, Christian Marriage Act, 1872, Parsi Marriage and Divorce Act, 1936 में सुधार की आवश्यकता है।

आगे बढ़ने का रास्ता

  • धार्मिक शिक्षा: धार्मिक बुद्धिजीवियों को अपने समुदायों को आधुनिक व्याख्याओं के आधार पर अधिकारों और दायित्वों के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
  • खुली चर्चा: सरकार को विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करते हुए अनुच्छेद 44 की सामग्री और महत्व को समझाकर यूसीसी के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहिए।
  • क्रमिक परिचय: फर्जी समाचार और दुष्प्रचार जैसी चिंताओं को दूर करते हुए सामाजिक सुधार क्रमिक होने चाहिए।
  • सामाजिक सद्भाव को प्राथमिकता देना: राष्ट्र के सांस्कृतिक ताने-बाने को संरक्षित करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

  • यूसीसी के इर्द-गिर्द जुड़ी चर्चा केवल कानून और गवर्नेंस के विमर्श से ही नहीं ,बल्कि बुनियादी रूप से लोकतंत्र, पंथनिरपेक्षता और भारतीय राष्ट्र-राज्य के समावेशी चरित्र जैसे व्यापक मुद्दों से भी जुड़ी हुई है।
  • यह समझना भी आवश्यक है कि यूसीसी सांस्कृतिक या धार्मिक विविधता का अपमान नहीं अपितु समान अधिकारों एवं न्याय का समर्थन है।
  • एक राष्ट्र के रूप में भी यूसीसी विविधता में एकता के प्रोत्साहक बिंदु के साथ ही पंथनिरपेक्षता को मजबूत करने में आधारशिला का काम कर सकती है।
  • यूसीसी का मर्म एकरूपता नहीं, बल्कि सामंजस्य स्थापित करना है।