नाटो प्लस के साथ भारत की संभावित भागीदारी
संदर्भ:
- यह लेख नाटो प्लस ढांचे में भारत के शामिल होने से संभावित लाभों और परिणामों पर चर्चा करता है।
नाटो प्लस क्या है?
- यह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इज़राइल और दक्षिण कोरिया सहित पांच देशों का एक समूह है ।
- यह समूह वैश्विक रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में काम करता है ।
नाटो प्लस का सदस्य बनने से भारत को लाभ:
- भारत को इन देशों के बीच निर्बाध खुफिया जानकारी साझा करने की सुविधा मिलेगी ।
- भारत को बिना किसी समय अंतराल के नवीनतम सैन्य प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्राप्त होगी।
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत की रक्षा साझेदारी को और मजबूत करेगा ।
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) क्या है?
- यह 31 समान विचारधारा वाले उत्तरी अमेरिकी और यूरोपीय देशों का गठबंधन है ।
- इसकी स्थापना 4 अप्रैल, 1949 को उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा की गई थी ।
- उद्देश्य : सदस्य राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता, शांति की रक्षा करना ,राजनीतिक स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना ।
- संधि का अनुच्छेद पांच (आर्टिकल 5) : यदि सदस्य देशों में से किसी एक के खिलाफ सशस्त्र हमला होता है, तो इसे सभी सदस्यों के खिलाफ हमला माना जायेगा, और यदि आवश्यक हो तो अन्य सदस्य सशस्त्र बलों के साथ हमलावर सदस्य की सहायता करेंगे ।
- मुख्यालय: ब्रुसेल्स,(बेल्जियम)
"नाटो प्लस" नाटो और अमेरिका के पांच संधि
- सहयोगी राष्ट्र यानी ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान,इज़राइल और दक्षिण कोरिया की सुरक्षा व्यवस्था संदर्भित करता है।
- दिलचस्प बात यह है कि 'नाटो प्लस' शब्द नाटो के भीतर आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त या स्थापित अवधारणा नहीं है, लेकिन गठबंधन के संभावित विस्तार के संबंध में चर्चा और बहस में इसका इस्तेमाल किया गया है।
- इन देशों को सदस्य के रूप में शामिल करने के लिए नाटो के सिद्धांतों, दायित्वों और रक्षा प्रतिबद्धताओं के साथ उनकी अनुकूलता के मूल्यांकन और बातचीत की एक जटिल प्रक्रिया की आवश्यकता होगी।
- जहां नाटो का पहले लक्ष्य सोवियत संघ और अब रूस था, वहीं नाटो प्लस का ध्यान स्पष्ट रूप से चीन को नियंत्रित करने पर है ।इसलिए, चीन के साथ अपने विवादों को देखते हुए, भारत इस रूपरेखा में एक लुप्त कड़ी बना हुआ है।
नाटो प्लस में शामिल होने से भारत को लाभ:
- सुरक्षा घेरा : नाटो प्लस में भारत की भागीदारी एक सुरक्षा घेरा प्रदान करेगी, जो भारत-प्रशांत क्षेत्र में संभावित खतरों के खिलाफ सुरक्षा और प्रतिरोध को बढ़ाएगी।
- उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुंच: नाटो प्लस में शामिल होने से भारत को उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकियों, खुफिय साझाकरण प्लेटफार्मों और अन्य सदस्य देशों के स अंतर-संचालनीयता तक पहुंच मिल सकती है। इससे भारत की रक्षा क्षमताओं और आधुनिकीकरण को बल मिलेगा।
संभावित नतीजे:
- भू-राजनीतिक परिणाम: नाटो प्लस में भारत के शामिल होने से रूस के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी में तनाव आ सकता है और चीन नाराज़ हो सकता है। क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने और चीन के रुख को नियंत्रित करने में रूस के साथ भारत का सहयोग महत्वपूर्ण रहा है। नाटो प्लस में शामिल होने से यह ठोस रणनीतिक साझेदारी ध्वस्त हो सकती है।
- क्षेत्रीय सुरक्षा पर प्रभाव: अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन प्रणाली के साथ जुड़ने से भारत की कार्रवाई की स्वतंत्रता सीमित हो सकती है और चीन के प्रति एक स्वतंत्र नीति अपनाने में बाधा आ सकती है। यह क्षेत्र में भारत की सुरक्षा को जटिल बना सकता है और भारत-चीन सीमा पर आगे सैन्य निर्माण के लिए संभावित औचित्य प्रदान कर सकता है।
- सामरिक स्वायत्तता पर प्रभाव: भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की दीर्घकालिक नीति खतरे में होगी क्योंकि नाटो प्लस में शामिल होने के लिए गठबंधन के उद्देश्यों और रणनीतियों के साथ रक्षा और सुरक्षा नीतियों को संरेखित करने की आवश्यकता होगी। इससे भारत के स्वतंत्र रुख को महत्व देने वाले अन्य देशों और क्षेत्रीय संगठनों के संबंधों में तनाव आ सकता है।
- फोकस का भटकाव: यूरेशिया से लेकर इंडो-पैसिफिक तक फैले नाटो के व्यापक भू-राजनीतिक एजेंडे और संसाधन से भारत की क्षेत्रीय गतिशीलता, जैसे कि विवाद, आतंकवाद और क्षेत्रीय संघर्षों से दूर हो इसलिए, भारत को इन चुनौतियों से निपटने में नाटो से महत्वपूर्ण सहायता नहीं मिल सकती है।
निष्कर्ष:
- भारत को अगर नाटो प्लस का हिस्सा बनाया जाता है, तो फिर हिंद प्रशांत क्षेत्र में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चायना की आक्रामकता को रोकने और ग्लोबल सिक्योरिटी को मजबूत करने में अमेरिका और भारत के बीच की साझेदारी मजबूत होगी।'