चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से सम्बंधित विधेयक

समाचार में

  • हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) एवं चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करने के उद्देश्य से सरकार ने राज्यसभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया है।

कानून की जरूरत

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति:

  • सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों के लिए कार्यात्मक स्वतंत्रता की मांग करने वाली याचिकाओं की एक श्रृंखला की जांच करते हुए फैसला सुनाया था कि चयन पैनल में प्रधान मंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) शामिल होने चाहिए।
  • यह चयन पैनल तब तक जारी रहेगा जब तक संसद नियुक्ति के तरीके पर कोई कानून नहीं बना देती।

कार्यकाल पूरा न होने का मामला:

  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि 'मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1991' के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह साल है, लेकिन 2004 के बाद से किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023:

के बारे में:

  • यह विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 को निरस्त करता है ।
  • संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार , चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्त (ईसी) की  संख्या राष्ट्रपति द्वारा  निर्धारित किया जाता है |
  • सीईसी और अन्य ईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। 
  • विधेयक चुनाव आयोग की समान संरचना को निर्दिष्ट करता है ।

वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति:

  • वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिये संविधान में कोई विशिष्ट विधायी प्रक्रिया परिभाषित नहीं है। संविधान के भाग XV (निर्वाचन) में केवल पाँच अनुच्छेद (324-329) हैं।
  • संविधान का अनुच्छेद 324 के अनुसार, "चुनाव का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित है जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अन्य निर्वाचन आयुक्त शामिल होते हैं।
  • मार्च 2023 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी।

विधेयक में प्रस्तावित चयन समिति:

  • विधेयक में प्रस्तावित किया गया है कि चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्त (ईसी) की नियुक्ति के लिए चयन पैनल में  निम्न लोग शामिल होंगे-
  • अध्यक्ष के रूप में प्रधान मंत्री,
  • सदस्य के रूप में विपक्ष के नेता, और
  • प्रधान मंत्री द्वारा एक अन्य सदस्य के रूप में नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।
  • विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों का चयन करने के लिए पहले गठित तीन सदस्यीय पैनल से भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को हटा दिया गया

खोज समिति:

  • चयन समिति के विचार के लिए एक खोज समिति ,पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी ।
  • सर्च कमेटी की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे । 

सीईसी और ईसी की योग्यता:

  • जो व्यक्ति केंद्र सरकार के सचिव पद के समकक्ष पद धारण कर रहे हैं या कर चुके हैं, वे सीईसी और ईसी के रूप में नियुक्त होने के पात्र होंगे।  
  • ऐसे व्यक्तियों को चुनाव प्रबंधन और संचालन में विशेषज्ञता होनी चाहिए।

निष्कासन और इस्तीफा:

  • संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत , सीईसी को केवल सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह ही उसके कार्यालय से हटाया जा सकता है । 
  • यह राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से किया जाता है , जो एक ही सत्र में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव पर आधारित होता है।
  • हटाने के प्रस्ताव को निम्नलिखित के साथ अपनाया जाना चाहिए:
  • प्रत्येक सदन की कुल सदस्यता का बहुमत समर्थन, और
  • उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का कम से कम दो-तिहाई समर्थन। 
  • किसी ईसी को केवल सीईसी की सिफारिश पर ही पद से हटाया जा सकता है ।
  • इसके अलावा, 1991 अधिनियम में प्रावधान है कि सीईसी और अन्य ईसी अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप सकते हैं ।
  • 2023 का विधेयक इस निष्कासन और इस्तीफे की प्रक्रिया को बरकरार रखता है ।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

चुनाव आयोग को कठपुतली बनाना:

  • चयन पैनल की यह संरचना चुनाव आयोग (ईसी) की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगाती है क्योंकि चयन पैनल में प्रभावी रूप से सत्तारूढ़ दल के दो सदस्य होंगे- प्रधान मंत्री और कैबिनेट मंत्री।
  • विपक्ष तर्क दे रहा है कि विधेयक में सीजेआई के स्थान पर कैबिनेट मंत्री को शामिल करने से संकेत मिलता है कि सरकार चुनाव आयोग को कठपुतली बनाने की कोशिश कर रही है।

मौलिक अधिकारों की भावना के विरुद्ध:

  • अदालत के फैसले में कहा गया है कि वोट देने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जिसे चुनाव आयोग द्वारा चुनावों के संचालन के माध्यम से लागू किया गया है।
  • और इसलिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस अधिकार का प्रयोग ठीक से किया जा सके, चुनाव आयोग को कार्यपालिका से स्वतंत्र होना होगा।

इसलिए, जैसा कि प्रस्तावित है, विधेयक निर्णय के अक्षर का पालन करता है, लेकिन यह निर्णय की भावना का बिल्कुल भी पालन नहीं करता है।

हालिया में हुए  फैसले का प्रतिवाद:

  • सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि कम से कम दखल देने वाली ऐसी व्यवस्था होगी जहां नियुक्ति समिति में मुख्य न्यायाधीश की मौजूदगी हो|
  • यह विधेयक संविधान पीठ के  उपरोक्त  फैसले के विपरीत है ।
  • यह निर्णय 1990 में दिनेश गोस्वामी समिति और 1975 में न्यायमूर्ति तारकुंडे समिति की सिफारिशों के अनुरूप  था ।

भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में चुनाव आयुक्तों की भूमिका:

भारत निर्वाचन आयोग:

  • भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न करने के लिये वर्ष 1950 में भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना की गई थी।
  • चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता है जो निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष होता है और अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं।
  • चुनाव आयोग के अन्य सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है।

निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव आयोजित करना:

  • संविधान के अनुच्छेद 324 में प्रावधान है कि संसद, राज्य विधानसभाओं, भारत के राष्ट्रपति के कार्यालय और भारत के उपराष्ट्रपति के कार्यालय के चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण की शक्ति निर्वाचन आयोग में निहित होगी।
  • आदर्श आचार संहिता: ECI यह सुनिश्चित करता है कि निर्वाचन के दौरान सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को समान अवसर मिले।
  • आदर्श आचार संहिता का उपयोग कर, चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये पालन करने हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
  • राजनीतिक दलों को लेकर इसकी भूमिका: इसका कार्य राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना है।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान कर और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित कर विवादों के निपटारे के लिये न्यायालय के रूप में कार्य करता है।
  • मतदाता शिक्षण कार्य:  मतदाताओं को उनके अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में जागरूक करने के लिये मतदाता शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन भारत निर्वाचन आयोग करता है।
  • जिसके  तहत उन्हें मताधिकार  के महत्त्व और वोट डालने के तरीके के बारे में प्रशिक्षित करने का कार्य किया जाता है।
  • चुनावी  खर्च का लेखा-जोखा : भारत निर्वाचन आयोग , चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के खर्च की निगरानी करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह कानून द्वारा निर्धारित खर्च सीमा से अधिक न हो।
  • चुनावी कदाचार को  हल करना: यह आयोग बूथ कैप्चरिंग, फर्ज़ी मतदान और मतदाताओं को डराने-धमकाने जैसी चुनावी कदाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करता है।


स्वीडन की  स्वतंत्र वी-डेम इंस्टीट्यूट , जो दुनिया भर के लोकतंत्रों की तुलना करता है, ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त की स्वायत्तता में कमी का हवाला देते हुए भारत को "चुनावी निरंकुशता" का  दर्जा  दिया है।

निष्कर्ष

  • भारत का चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है जो न केवल चुनाव कराता है बल्कि अर्ध-न्यायिक भूमिका भी निभाता है ।
  • अतःसरकार को चयन समिति की संरचना की समीक्षा करनी चाहिये और इसे और अधिक संतुलित बनाने पर विचार करना चाहिये।
  • इसमें निष्पक्ष निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने हेतु विपक्ष को एक मज़बूत प्रतिनिधित्व प्रदान करना शामिल हो सकता है।